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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (9) आँसू उनके भी झरते हैं (‘माधुरी’ से)

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
जिनके दिल पत्थर होते हैं |  आँसू उनके भी झरते हैं ||
बे हुये पातालतोड़ सा जिनका हृदय पनीला होता |
केवल बाहर की कठोरता- बस ऊपर पथरीला होता ||
पड़े प्रेम की चोट सुहानी, बन जल-धार फूट पड़ते हैं |
जिनके दिल पत्थर होते हैं  | आँसू उनके भी झरते हैं ||1||

  
तपे ताप से सागर-तल जब-बनते रस मय सघन-सघन घन |
मानसून बन बरस-बरस कर-सदा भिगोते घर-आँगन-वन ||
मिला हुआ सन्ताप भूल कर, बन कर नीर बरस पड़ते हैं |
जिनके दिल पत्थर होते हैं  | आँसू उनके भी झरते हैं ||2||


अन सुलझी सी एक समस्या,  हर पीड़ा की जटिल वेदना |
दर्द और सुख एक बराबर, यदि होती है सजग चेतना ||
मनोभाव हो रसमय बहतेआँखों में आकर रिसते हैं |
जिनके दिल पत्थर होते हैं | आँसू उनके भी झरते हैं ||3||
कभी-कभी तो ज्वार हृदय में, आता और चला जाता है |
सागर-तट सी नयन-कोर को-ताबड़तोड़ भिगो जाता है ||
  विचार  सीपों  जैसे  आते,     भावों  के  मोती  मिलते  हैं |
जिनके दिल पत्थर होते हैं आँसू उनके भी झरते हैं ||4||


विभा रानी श्रीवास्तव  – (3 October 2014 at 03:04)  

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