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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (15) कोई मीत बिछुड़ जाता जब !

मित्रो ! आज के प्रात:कालीन समाचारपत्र से ज्ञात हुआ कि मेरे एक अच्छे मित्र अशोक शर्मा जो पीलीभीत के जाने-माने व्यक्ति होने के साथ एक कवि और साहित्यकार भी थे, का कल अल्मोड़ा के चितई गोल देवता के स्थल के पास किसी होटल में एकाएक निधन हो गया ! परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि मेरे दिवंगत मित्र की आत्मा को शान्ति प्रदान करे और उनके परिवारी जनों को इस असहनीय शोक को सहन करने की क्षमता प्रदान करे ! 
ॐ शान्ति:-शान्ति:-शान्ति: !!!   
 मेरे मन की पीड़ा एक अप्रयास निस्सृत गीत द्वारा व्यक्त हो रही है-यह गीत नहीं अपितु रोदन स्वर है !!      

मन में कितनी पीड़ा होती, कोई मीत बिछुड़ जाता जब !
साथ निभाना, साथ निभा कर, एकाएक अलग हो जाता !!
मूल्यवान समझ कर उसको, अपने हाथ छिपा कर रखते |
होता दुःख, बन्द मुट्ठी से, हीरा कोई निकल जाता जब !
मन में कितनी पीड़ा होती, कोई मीत बिछुड़ जाता जब !!1!!
चलते-चलते किसी पन्थ पर, चलने की आदत पड़ जाती |
लक्ष्य मिलेगा, इसी सोच में, पलभर तनिक खुशी मिल जाती ||
स्वप्न बिखर जाते हैं सारे, और कल्पना चोटिल होती-
कभी लड़खड़ा, दैवयोग से, बढ़ता क़दम फ़िसल जाता जब !
मन में कितनी पीड़ा होती, कोई मीत बिछुड़ जाता जब !!2!!
“प्रसून” खिलते, हँसते-हँसते, सुन्दर सुखमय महक लुटाते |
आस-तितलियाँ, चाहत-भँवरे, थिरका करते, गीत सुनाते ||
हास-नृत्य-गायन-थिरकन पर, सब पर पानी फिर जाता है-
दुर्भाग्य से, हँसता-खिलता कोई बाग उजड़ जाता जब !
 मन में कितनी पीड़ा होती, कोई मीत बिछुड़ जाता जब !!3!!


   

सुशील कुमार जोशी  – (13 October 2014 at 07:48)  

दुख:द !
विनम्र श्रद्धाँजलि !

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