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हिन्दी के प्रति (7) (हिन्दी अपनाइये)

  (हिन्दी-पखबाड़े में तीसरी रचना)
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
हिन्द देश के निवासी, हिन्दी अपनाइये |

और इस देश को यों स्वर्ग सा बनाइये ||

भाषा है ‘स्वतंत्रता की धुरी’ एक मात्र बन्धु |

भाषा में ही छुपा हुआ ‘भावना का सुधा-सिन्धु’ ||

एक भाषा,  एक लिपि अपना के प्रेम से यों – 

दूसरों की बात सुन,  अपनी सुनाइये ||

हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||१||
भाषायें हैं और भी जो,  उनका भी मान करें |

किन्तु उन्हें सीख इकार मत अभिमान करें ||

जो भी आये द्वार उसे आदर दुलार दे के –

'निज स्वत्व’ बचा उसे गले से लगाइये ||

हिन्द देश के निवासी, हिन्दी अपनाइये ||२||
सभ्यता सभी की सीख पर-गुण मन धरें –

माना कि विकास करें, और ज्ञान-धन भरें ||

किन्तु निज संस्कृति, वाणी, जो विरासत में- 

मिली इसे छोड़िये न ‘प्राण’ से बचाइये ||

हिन्द देश के निवासी, हिन्दी अपनाइये ||३||
‘एकता’, ‘अनेकता’ में, माना मेरे देश में है |

कोई बात नहीं, माना भेद भूषा वेश में है ||

समझें जो बात लोग, ‘गूँगे और बहरे’ न हों- 

इस लिये हिन्दी भाषा सरल बनाइये ||

हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||४||
जैसे महासागर में सारी नदियाँ हों मिली |

भिन्न भिन्न फूलों से या सारी बगिया हो खिली ||

वैसे सारी भाषाओं के शब्द मेरी हिन्दी में हैं- 

स लिये हिन्दी निज ‘वाणी’ में बसाइये ||


हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||५||



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