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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (8) शोषण-गीत

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
कभी बन गया नक़ली नेता, कभी लालची लाला यह |
भेष बदल कर दानव आया, उजाले कपड़े वाला यह ||
 खाता फिरता है हराम की | करे न मेहनत यह छदाम की ||
कपट तपस्वी,असत्-पुजारी, जपता माला फिरे राम की !!
कभी बन गया मौनी बाबा, लगा के मुहँ पे ताला यह |
चेले धूर्त्त बटोरे इसने, बहुत बड़ा दल वाला यह ||
भेष बदल कर दानव आया, उजले कपड़े वाला यह ||1||
खुराफ़ात इसकी आदत में | छाया रहता है यह सब में ||
यह शोषण का मूर्त्त रूप है, असरदार रहता जन-जन में ||
शरीफ़ चोला, सफ़ेद हाथी, लेकिन दिल का काला यह ||
हो गया कितना मोटा सबके मुहँ का छीन निवाला यह |
भेष बदल कर दानव आया, उजले कपड़े वाला यह ||2||
सुबह बाग में जाता है यह | “प्रसून” चुन कर लाता है यह ||
काटे बाग, तलैयां पाटीं, रधती रोज़ दबाता है यह ||
दसों दिशाओं का कर देगा एक दिवस मुहँ काला यह |
पर्यावरण का दुश्मन पापी, नम्बर दो धन वाला यह ||
भेष बदल कर दानव आया, उजले कपड़े वाला यह ||3||

 
  





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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (7) ओ धरती के दुश्मन सुन ! (‘ठहरो मेरी बात सुनो !’ से )

                                                                                         (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
ताल पाट कर, बाग काट कर, भवन बनाने वाले सुन ! 
धरती के सुन्दर-सुन्दर परिधान मिटाने वाले सुन !
तू अपने वजूद के ख़ातिर | 
बना हुआ है कितना शातिर !!
केवल अपने लिए सोचता, औरों की अब चिन्ता क्या ! 
धरती की आबरू लूट, अस्तित्व बढ़ाने वाले सुन !!
धरती के सुन्दर-सुन्दर परिधान मिटाने वाले सुन !!1!!
    तेरे पापों के कलंक से | 
रुधिर बहा है ‘धरा-अंक’ से ||
तू कष्टों का बना पिटारा, बाँट रहा है सबको दुःख ! 
‘पाप-भाव’ तेरा बिच्छू सा, डंक चुभाने वाले सुन !
धरती के सुन्दर-सुन्दर परिधान मिटाने वाले सुन !!2!!
सदाचार का तू है दुश्मन ! 
अनाचार से भरा तेरा मन !!
है पापों की बड़ी पोटली, तेरे सर पर लदी हुई ! 
दुराचार को अपने कालुषित अंग लगाने वाले सुन !
धरती के सुन्दर-सुन्दर परिधान मिटाने वाले सुन !!3!!
तेरे बोये अंगारों से ! 
ज्वाल झरी है श्रृंगारों से !!
तूने उगला आग का दरिया, अग्निजिव्ह दानव बन कर ! 
सुलग रहीं तेरी करतूतें, अमन जलाने वाले सुन!
धरती के सुन्दर-सुन्दर परिधान मिटाने वाले सुन !!4!!
“प्रसून” वाले हर उपवन में | 
सुख से महके हर आँगन में ||
ज़हर भरी सुइयाँ तेरे व्यवहारों में हैं छुपी हुई ! 
चुपके-चुपके चुभने वाले शूल उगाने वाले सुन !
 धरती के सुन्दर-सुन्दर परिधान मिटाने वाले सुन !!5!!

 


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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (6) आत्म बल अपना सँजोयें ! (गीत)

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
त्याग दें सुस्ती का आलम !  बटोरें ताज़ा नया दम !!
रुकावट आये न कोई-अनवरत चलते रहें हम !!
त्याग करके नींद गहरी-
तुरत जागें अब न सोयें !
आत्म बल अपना सँजोयें !!1!!
 
  उदासी सब की भगायें ! फूल खुशियों के खिलायें !!
चुभन के माहौल में भी-अमन की बस्ती बसायें !!
नफ़रतों के धरातल पर-
प्यार के कुछ बीज बोयें !
आत्म बल अपना सँजोयें !!2!!
मत किसी को कार बाँटें ! गन्ध के उपहार बाँटें !!
घृणा का आँचल समेटें-हो सके तो प्यार बाँटें !!
मत किसी के मन-अटल में-
नुकीले काँटे चुबोयें !
आत्म बल अपना सँजोयें !!3!!
होठ पर मुस्कान हो बस ! मधुर आशा-गान हो बस !!
चोट खा विशवास अपना-मत कभी निष्प्राण हो बस !!
छुपायें हर पीर मन की-
किसी के सम्मुख न रोयें !
आत्म बल अपना सँजोयें !!4!!

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