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मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(ख) झरोखे से(३) 'निज अतीत’ की क़ीमत आँकें |

जो नज़र आताहै,समाचार-पत्रों  में छपता है ,टी.वी.धारावाहिकों में दीखता 

है ,हाज़िर है !(सारे चित्र,'गूगल-खोज' से साभार |)






‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें 

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चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |

‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||
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कल तक पिता और माता का, आदर करतीं थीं सन्तानें |

अब करती हैं घोर उपेक्षा, असम्मान जाने अनजाने ||


पिता के वचन न अच्छे लगते,

बोंल न भाते हैं अब माँ के ||

‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |

‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||१||


अपने घर की,छोड़ के ‘रोटी’, औरों की थाली तकते हैं |

‘उसका माल है मुझसे अच्छा’ कहते हुये नहीं थकते हैं ||

भैया हमको मिला,सो खायें -

मत औरों के घर में ताकें ||

‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |

‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||२||


अजब शौक है ‘सुंदरता’ का, फूल छोड़ कर कलियाँ नोचें |

कितना काम घिनौना है यह,न शर्मायें, न कुछ सोचें ||

अपने घर के ताख सजाने,

लाते हैं पंछी की पाँखें ||

‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |

‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||३||







“प्रसून” ‘इस’ से बात करें क्या, ’इस’ ने ‘लाज’ बेच कर खा ली |

बेदर्दी से,’प्यार की क्यारी’, ‘घृणा-क्षार’ को डाल सुखा ली ||

शायद फिर ‘सपूत’ बन जायें,

‘कुछ कपूत’ इस ‘धरती माँ’ के ||

‘चिन्तन’ की खिड़की से झाँकें |

‘निज अतीत’ की क़ीमत आँकें ||४||



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