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मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य) (घ) (छल-का जाल)-(२) |स्वयं से ही छल|


प्रतीकों में देश के घुटन भरे माहौल के साथ पर्यावरण 

आदि के विद्रूप और मानसिक कुण्ठाओं की ओर संकेत 

है |  ( सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार ) 

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‘रिश्तों’ को ‘पैसे’ से माप लिया है |
‘स्वयं’ से ही छल हमने आप किया है ||
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हैं ‘कलियों’ से ‘भँवरे’ बिछुडने लगे |
‘तितलियों’ के ‘पंख’ अब उजड़ने लगे ||
‘गीत’ हुये सूने |
औ ‘नृत्य’ हुये सूने-
‘प्यार भरे सारे ही कृत्य’ हुये सूने ||
‘मधुवन’ ने कौन सा यह ‘पाप’ किया है ?
‘पतझर’ ने कौन सा ‘अभिशाप’ दिया है ||
‘स्वयं’ से ही छल हमने आप किया है ||१||

हैं ‘प्रेम के घरौंदे’ सुलगने लगे |
‘बारूदी नाते’ हैं  पनपने लगे ||
‘वेश’ हुये सूने |
औ ‘केश’ हुये सूने ||
झुलस झुलस ‘रूप के परिवेश’ हुये सूने ||
‘अन्तर ही अन्तर’ वह ‘ताप’ पिया है |
‘धुएँ’ ने ‘कुचित्र’, ‘मन’ पे छाप दिया है ||     
‘स्वयं’ से ही छल हमने आप किया है ||२||

‘पिक’,’मैना’,’तोते’ ‘मूक’ होने लगे |
‘उदर में पली’ जो ‘भूख’ ढोने लगे ||
‘हास’ हुये सूने |
‘परिहास’ हुये सूने ||
‘मधुरिम मिलन’ के ‘उल्लास’ हुये सूने ||
‘भय के बादलों’ ने इन्हें ढाँप लिया है ||
‘खूनी आतंक’ ने ‘सन्ताप’ दिया है ||
‘स्वयं’ से ही छल हमने आप किया है ||३|| 


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