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बाज (एक अप्रकट निहित सत्य)


गज़ल-कुञ्ज(गज़ल संग्रह) से उद्धृत एक गज़ल 

 यद्यपि आतंक एक अतीत का इतिहास प्रतीत होता है | किन्तु आज भी 


उस के चिन्ह अप्रकट तथा बदले परिवेशों में दिखाई देते हैं | वह जो जलती 


भडकी आग थी,अब सुलगती प्रतीत होती है | अपहरण,दुराचार, भ्रष्टाचार, 


अनाचार और बलात्कार आदि की खबरें अखबारों के पृष्ठों को आये दिन 


रंगती  हैं |शैतानी फ़ितरत ही तो आतंक है | 





                                                                          
आतंक जैसे उड़ते हुये चील हुए हैं |


जनता के भोले लोग अबाबील हुए हैं ||
 
जिनके दिलों में स्नेह का न नीर बचा है -


जिनके नयन मानो सूनी झील हुये हैं ||
 


हैं चित्त जिनके सत्य के सु-ज्ञान से खाली- 


मानो अँधेरे में बुझे कन्दील हुये हैं ||  


  
 


इंसानियत के पाँव में वे लोग चुभे हैं -


रस्ते में पड़ी जंग लगी कील हुये हैं ||



कर के कुतर्क गर्क नर्क कर रहे समाज-


ये लोग ज्यों 'शैतान' के वकील हुये हैं ||
  


 


"प्रसून" प्रीति-बेलि की डालों पे जो खिले -


वे वासना-पराग से अश्लील हुये हैं || 
 

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