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ज्वलंत- प्रश्न


छल-कपट के कब करोगे, कम कसे दबाव कुछ |
पूरे ताकि, होसकें इंसानियत के ख़्वाब कुछ ||

मांग जाँच वोट, नोट चोर शाह बन गये|
बदल ली हैं नज़र और बद निगाह बन गये
प्रजातन्त्र को छला है फांस कर फरेब में-
फाख्तों में राज करें छल से ज्यों उकाब कुछ||१||

अरे हठीले दानवों यहाँ कहाँ से आ गये?
हमारे आसमान में चील बन के छा गये||
शान्ति भंग हो गयी कबूतरों के देश में -
दहशतों के साये तले खल रहे घिराव कुछ ||२||

तुम्हें प्यारा रजत-स्वर्ण, हमें प्यारा नेह है|
हमारा लक्ष्य रूह है, तुम्हारा लक्ष्य देह है||
लूटते हो क्यों हमें, पूजारियों के वेश में -
धर्म-धुरी तोड़ डी है करके क्यों अजाब कुछ??३??

हमारी हरी भरी क्यारियों में प्रीति खिल रही |
सुमन "प्रसून"हँस उठे हैं, प्यारी गन्ध मिल रही||
आग जैसी जलन भरी,उपवनों के स्नेह में-
जला दिया नफ़रतों का डाल कर तेज़ाब कुछ||४||









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