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जानवर की भूख









जानवर की भूख में बड़ी जान होती है |
इसे बस, खुराक की ही पहँचान होती है ||

मिले,या न मिले कभी औरों को खाने को-
खुद भर पेट खाने में ही शान होती है ||

कुम्भकर्णी भूख जब नींद से जगती है |
बस्ती इंसानों की परेशान होती है ||

जितना खिलाता है सौ गुना बसूलता है-
अब दानी की दान की दूकान होती है ||

इनाम, नाम,ख्याति न मिले, तो मर जाती है-
-
इनकी दया कितनी लचर, बे जान होती है !!

खाने से बढ़ कर तो सभी को खिलाना है -
यह मानवों की भावना महान होती है ||

'आज है खाने को,कल के लिये बटोर लो' -
"प्रसून"यह सोच कितनी नादान होती है ||


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एक छोटी सी गजलिका
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अँधेरा हर बस्ती में चिराग ले कर जाइये |
हिम शिला सी भावनाएं, आग ले कर जाइए ||

'निराशा' की चोटओं से मन की बीन टूटी है -
आशाओं के नये नयेराग ले कर जाइए ||

घृणा की दुर्गन्ध रची बसी इनके प्राणों में -
बस, प्यार के "प्रसून"का पराग ले कर जाइये ||
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एक् नीति गज़ल
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नियम, संयम,धर्म का जो अखंडित होता है |
प्रेम, ज्ञान भक्ति से जो सुमंदित होता है ||

किसी देश, जाति या धर्म का हो चाहे-
हर एक व्यक्ति ऐसा,बस पण्डित होता है ||

ज्ञान का परिधान ओढ़े 'अज्ञान' छलता है-
अवश्य कभी 'नियति से वह दण्डित होतम है ||

करेगा बिझूका क्या खेत की रखवाली -
ममोहक ठाठ भीतर विखण्डितहोता है ||

'प्रसून' एक चिनगारी का कण तो नगण्य है-
बना ज्वाल हवाओं से प्रचंडित होता है ||
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लिखा जाता है (एक गजल)
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हर देश का लहू से, इतिहास लिखा जाता है |
काँटों की कलम से, मधुमास लिखा जाता है ||

उजाले हृदय-पटल पर, बलिदान की स्याही से-
निष्ठा,प्रेम, आस्था, विशवास लिखा जाता है ||

करते नहीं कोरे भाषण, देश की तरक्कियाँ-
पसीने की स्याही से विकास लिखा जाता है ||

घर के सारे लोग एक होते तो मन पर -
औरों के दर्दों का अहसास लिखा जाता है||

बढ़ जाता है प्रेम और घृणा मिट जाती है-
तो सभी के नाम पर 'उल्लास' लिखा जाता है||

यादों के झरोखों से महकी पवन आती है-
चेतना पर 'अतीत' का आभास लिखा जाता है ||

पतझर की पीड़ा को पीता जब जी भर तो-
'प्रसून' की पंखुड़ियों में 'हास' लिखा जाता है ||
































































































































































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