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"अनुराग कहाँ है" (देवदत्त प्रसून)


हीर का अनुराग कहाँ है?
राँझे का वो त्याग कहाँ है?
मृत्यु वरण कर साथ न छोड़े,
ऐसी उर में आग कहाँ है?।।१।।

भीगी पलकोँ में जो गाये,
पीडा में जो स्वत्व भुलाये।।
जो विषाद में हास पिरोये ,
ऐसा मधुरिम राग कहाँ है ?।।२।।

कहाँ सती की अटल तपस्या?
रीति प्रीति की बनी समस्या।
कहाँ गया फ़रहाद का परिश्रम?
वह शीरी बेदाग कहाँ है ?।।३।।

हँस-हँस कर काँटोँ पर चलना
प्रियतम के संग वन में रहना।।
जल कर अग्नि परीक्षा दे कर-
तपे सो सत्य सुहाग कहा है ?।।४।।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  – (19 March 2011 at 03:51)  

अरे वाह!
एक दिन में दो रचनाएँ पढ़ने को मिलीं!
बहुत बढ़िया रचना लगाई है आपने!

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